खुसूर-फुसूर
समृद्धि से सामना…
मध्यप्रदेश अपने प्रारंभिक काल से ही समृद्ध रहा है। अपने उत्पत्तिकाल के दौरान भी यह बात सामने आई थी की विदर्भ के चले जाने के बाद प्रदेश में ऐसी या वैसी कमी रह जाएगी। ऐसा होगा…वैसा होगा…। उसके बाद भी प्रदेश अपनी समृद्धि के साथ आगे बढता रहा है। छत्तीसगढ के अलग होने के दौरान भी इसी प्रकार का वातावरण बनाया गया और मध्यप्रदेश को काफी कमजोर बताने की कोशिशें की गई। अपनी समृद्धि से मध्यप्रदेश बराबर आगे बढता रहा है। वन संपदा की बात हो या वन्य जीवों की या फिर किसी अन्य क्षेत्र की …प्रदेश ने हमेशा अपना योगदान दिया है। अब समृद्धि से खुलकर सामना होने लगा है। पहले समृद्धि दबी छुपी थी और अब वह सामने है। जल राशि के रूप में भी हमारे पास पर्याप्त है जो भी है उसका ही पर्याप्त उपयोग हम नहीं कर पाते है। वन संपदा और वन्यजीवों के क्षेत्र में प्रदेश के पश्चिमी हिस्से की समृद्धि से सामना हो रहा है। भरपूर वन्यजीवों और विलुप्त वन्यजीवों के साथ वन्य संपदा और वन्य औषधियों से भरपूर समृद्धि सामने आ रही है। इन सब मामलों से सामना ही वास्तव में अब हो रहा है। पूर्व में इनके होते हुए भी हम कस्तुरी मृग की तरह रहे हैं। जैसे जैसे उपयोग और जरूरत की स्थिति बनी वैसे वैसे सब कुछ सामने आने लगा। सामने आने पर समृद्धि का अहसास हुआ और समृद्धि से सामना ही हुआ है। अब इस समृद्धि को संजोने के हालात बनने लगे हैं और संजोने के साथ ही इस समृद्धि को संचय करने की स्थिति भी वास्तविक और गहरी है। वन्य संपदा और वन्यजीवों को लेकर बहुत जल्दी ही प्रदेश का पश्चिमी क्षेत्र अपनी समृद्धि से सामने आएगा और प्रदेश के मध्य में होने से इस क्षेत्र में पर्यटन पुराने सभी रेकार्ड को ध्वस्त कर देगा। खुसूर-फुसूर है कि वन संपदा और वन्यजीवों के इस समृद्ध क्षेत्र में अभी से कुछ माफिया अंदर ही अंदर सेंध मारने के लिए वन्य क्षेत्रों में बढ रही कीमतों के पूर्व ही जमीनों की खरीद फरोख्त करते हुए वहां काटेज एवं फूड कोर्ट के लिए जुगाड लगाने में लगे हैं। अभी वहां मात्र कुछ लाख में बहुत सी जमीन और मकान मिल रहे हैं बाद में वहां से पर्यटकों से करोडों की जुगाड लगाने के लिए यह बुआई की जा रही है।
